Sunday 26 September 2010

कॉमन वेअल्थ खेल

अरे ये क्या, आप सब तो घबरा गए । घबराइए बिलकुल नहीं न ही मैं कोई मीडिया पर्सन हूँ और न ही कोई खास चैनल पर इस कॉमन वेअल्थ गेम्स को ले कर एक मुद्दा बनाऊं कि किसने कितना कमाया, किस पार्टी ने कितना खाया, खिलाडियों को कैसा खाना दिया जायेगा, खिलाडी कैसे टूटे बिस्तर पर आराम करेंगे आदि-आदि । मैं पुरानी वही रश्मि श्रीवास्तव हूँ जो सिर्फ और सिर्फ यही बताने की कोशिश कर रही हूँ की आखिर ये कॉमन वेअल्थ गेम्स क्या है ? वैसे तो यह एक प्रकार की प्रतियोगिता है और इस प्रतियोगिता का मूल मकसद दुनिया को मित्रता जैसे पवित्र बंधन में बांधने का सन्देश देना है और आपस में एक जुट रहना है।
इस प्रतियोगिता में कॉमन वेअल्थ देश की टीमें ही हिस्सा लेती हैं। इस कॉमन वेअल्थ देश के सदश्य वे देश हैं जो कभी ब्रिटिश साम्राज्य के उप निवेश रहे थे। इस विशाल संगठन में सभी सदस्य देश आपस में एक ओफिसिअल भाषा और कॉमन वेल्युस से जुड़े होते हैं। अंगरेजी इन सभी देशों की ओफिसिअल लंगुएज है।
१८९१ में ब्रिटिश नागरिक एस्ले कूपर ने कॉमन वेअल्थ खेलों का पहला प्रस्ताव दिया था। ब्रिटिश साम्राज्य को कूपर का प्रस्ताव बहूत पसंद आया और शुरू हो गया कॉमन वेअल्थ गेम्स का महोत्सव।
आज हमें गर्व होना चाहिए क़ि हमारी भारत वर्ष जैसी पवित्र भूमि पर यह पर्व संम्पन होगा। जी- जान से मेहनत कर एकता का भाव रखते हुए इस प्रतियोगिता को सफल बनाने के लिए जो टीम निर्वाचित की गयी हैं उन्हें सहयोग प्रदान करें। स्वयं का स्वार्थ न सोच पूरे भारत देश की गरीमा को बनाये रखें और प्रतियोगिता को सफल बनाएं ताकि देश विदेश से आये खिलाडी मेहमानों के साथ दूर देश से आये अतिथि भी कह सकें हमारी संकृति ने सही ही सिखाया है अतिथि देवो भव:

Friday 23 October 2009

नेत्र - दान

देखिये ,दिवाली जैसा जगमगाहट भरा त्यौहार रौशनी लेकर आया ,और देखते ही देखते चला भी गया । थोड़े दिन का ही सही ,पर ये रौशनी का अगले बरस सभी को फिर इंतजार ,पर क्या आप सच में चाहेंगे ऐसी उजाला भर देने वाली दीपावली साल के ३६५ दिनों में हर घंटे यहाँ तक की हर सेकंड मनाएं। मेरी यह रचना का आशय आप समझ ही गए होंगे नेत्र-दान इस ओर बढाया गया मेरा यह कदम है, पग-पग आगे बढ़ने के लिए आप से सहयोग की आशा रखती हूँ।
हमारी भारतीय संस्कृति में वर्षों से दान शब्द का बड़ा ही महत्व रहा है। कुछ समय पूर्व "नवरात्र" जोर शोर से मनाये गए - माँ दुर्गा को प्रशन्न करने के लिए भक्त जनों ने अन्न दान, धन दान से लेकर माँ को आभूषण तक दान में समर्पित किए। इसके पहले पित्र- पक्ष जो की हमारे पूर्वजों की हमेशा से याद दिलाता है, लोग "गया" जैसी पवित्र भूमि पर जा कर पिंड दान जैसा महान कार्य करते हैं, और भी अनेक दान जैसे कन्या के माता पिता से अक्सर आपने कहते सुना होगा हमने तो भाई चारों धाम पूरे कर लिए क्योंकि कन्या का विवाह कर कन्या-दान जैसा बड़ा काम किया, पर मेरी इस प्रकाशित रचना में आप सभी को विशेषकर "नेत्र-दान" जैसे महान कार्य की ओर जागृत होना है।
जरा आँख बंद कीजिये और सोचिये जब हमें आँख में तकलीफ होती है और हम आई ड्राप डालते हैं तो हमें कुछ सेकंड ही आँख बंद रखनी होती है और हम कितना परेशान हो जाते हैं, अन्धकार ही अन्धकार काला पन लिए हुए चारों ओर अँधेरा लगने लगता है मानों कब जल्दी से आँखें खोलो, सोचिये इस संसार में ऐसे कितने अभागे लोग हैं जिनके जीवन में हमेशा ही अँधेरा रहता है पर क्या आप जानते हैं ? उनके इस अंधकारमय जीवन को कोई चमत्कार नहीं बल्कि छोटे से प्रयास नेत्र- दान जैसे महान कार्य से दूर कर सकते हैं। बस तुंरत जाग जाईये आँखें खोलिए और इस अनमोल दान नेत्र-दान जैसे पवित्र काम को कर डालिए।
मेरे इस रचना को पढने वाले अनेक सज्जन इन्सान इस दान को कर भी चुके होंगे तो भी रुकिए नहीं दूसरों को भी इस मार्ग की राह दिखाइए, क्योंकि संसार में जन्मे हर इंसान को हक़ बनता है ईशवर द्वारा सुंदर संसार की रचना को निहार सकें।
हम प्रण करें और प्रतिज्ञा लें और गर्व से कह उठें-
"ऊंचाई तक उठने के लिए विकास चाहिए,
अंधेरे को भगाने के लिए प्रकाश चाहिए,
सब कुछ सम्भव है आपके द्वारा,
बस आप में कुछ कर सकने का विश्वास चाहिए।"
मैं नीचे कुछ आँखें दान करने के लिए कुछ फ़ोन नम्बर दे रही हूँ इच्छुक लोग संपर्क कर सकते हैं।
(01) Dr.Shroff's Charity Eye Hospital
New Delhi-011-43524444,43528888
(02) Jaslok Hospital Eye Bank
Mumbai- 022-24933333/24939595
(03) Divya Jyot Eye Hospital
Thane- 02528-222875/222678
(04) Rotary Narayana Nethralaya
Kolkata- 033-23673312/3/4
(05) Raghudeep Eye Clinic
Ahmedabad- 079-27492303/27490909
(06) Suraj Eye Institute
Nagpur- 0712-2595600/2595636
(07) Sankara Nethralaya
Chennai- 044-28272727/28271616/28233556

Tuesday 8 September 2009

कांग्रेस -जैसी मजबूत सरकार की लाचार,बेचारी ,भूख से तड़पती मजबूर जनता

क से कौन ?
क से कैसे ?
क से कब ?
क से क्या ?
क से कहाँ ???
इतने सारे सवाल मेरे मन में क्यों उमड़ रहे हैं और ध्यान से देखिये सभी सवाल वर्णमाला के "क" जैसे महत्वपूर्ण अक्षर से सम्बंधित हैं। आप समझ ही गए होंगे की कांग्रेस का "क" भी इतना ही महत्वपूर्ण है। जब हम सब देशवासी इतनी महत्वपूर्ण और मजबूत सरकार को भरी मतों से विजयी बना कर लाये हैं, तो यकीनन बहुत सारी आशाएं और ढेर सारी उम्मीदें भी हैं। सबसे पहले तो मैं क्षमा चाहूंगी की कृपया कर मेरे शब्दों को अन्यथा न लें, बस यह सब गरीबों और मध्यमवर्गीय जनता की पुकार है।
सरकार को जीत का ताज पहनाने में इस वर्ग का सबसे बड़ा योगदान रहता है पर ये क्या ? ये वर्ग तो बिना डायबिटीज़ हुए ही बिना चीनी की चाय पी रहा है- मंहगाई जो आज स्वैइन फ्लू की तरह तेजी से बढ़ रही है बेचारी यह जनता पहले ही काली चाय पीती थी ( क्योंकि दूध के दाम तो वैसे ही सर चढ़ कर बोल रहे हैं)। कहीं ये महंगाई का वायरस यूंही फैलता रहा तो शायद इन्हे गरम पानी पी कर ही काम चलाना पड़ेगा।
मेरे कहेना का कतई ये तात्पर्य नहीं है की यह महंगाई कांग्रेस सरकार के राज्य में है, सरकार तो वकाया इसके कारण भी समझा रही है जैसे गन्ने का कम उत्पादन होना, मानसून वीक होना, रुपया की कीमत में गिरावट वैगरह वैगरह। कारण जो भी हों, लेकिन अगर हम ये सोचें यह महंगाई की मार को रोजमर्रा की चीजों की जगह दूसरी तरीके से पूरा किया जा सके मसलन बड़ी बड़ी चार पहियों की गाडियों पर स्पेशल टैक्स (महंगाई टैक्स) लगा कर, आलीशान मुल्तिप्लेक्सेस में टिकेट्स के दाम बढ़ा कर, होटल्स के तेर्रिफ बढ़ा कर, ब्रांडेड चीजों पर भी स्पेशल महंगाई टैक्स लगा कर आदि।
कहने का तात्पर्य यह है की इससे उच्च वर्गीय लोगों की जेब पर जोर तो जरूर पड़ेगा, पर उन लोगों को कोई अन्तर नहीं पड़ेगा, पर सच कांग्रेस सरकार मेरा एक छोटा सा, शब्दों के माध्यम से प्रयत्न है जो शायद काफ़ी हद तक गरीबों के पेट में जो महंगाई की आग जल रही है उससे उन्हें छुटकारा मिल सके।
क्योंकि जहाँ चाह वहां राह।
उम्मीद और विश्वास के साथ।

Saturday 5 September 2009

Don't Change the World

Hello Readers,
Everybody knows that we live in a beautiful world but do not spoil beauty of the world by terrorism,fighting with each other and do not try to change the world.I am narraing a small story which will explane my feelings towards our world.
Once upon a time, there was a king who ruled a prosperous country.One day, he went for a trip to some distant areas of his country.When he was back to his palace , he complained that his feet were very painful , because it was the first time that he went for such a long trip, and the road that he went through was very rough and stony.He then ordered his people to cover every road of the entire country with leather. Definitely , this world need thousands of cows skin, and would cost a huge amount of money .
Then one of his wise servant dared himself to tell the King, "Why do you have to spend that unnecessary amount of money? Why don't you just cut a little piece of leather to cover your feet?"
The king was surprised, but he later agreed to his suggestion, to make a "shoe" for himself.
There is actually a valuable lesson of life in this story: to make this world a happy place to live, you better change yourself-your heart; and not the world.